मौन की भाषा
*बहुत बोलता रहा अभी तक
किसी ने कुछ नहीं सुना
या यूं कहिए सुनना ही नहीं चाहा
अब मैंने मौन धारण कर लिया है*
जब से मैंने मौन धारण किया
लोग हैरान और परेशान हैं
मेरा बोलना जिन्हें तनिक भी
ना भाता था ,आज मेरे
मौन से भी बैचैन हैं ।
फिर भी अब मैं खुश हूं
ना कुछ कहने का ना सुनने का गम
एक राज की बात बताऊं
अब तो मेरी खामोशी भी बोलती है
पर मौन की भाषा जो समझ
जाते है।वो ख़ास होते हैं ।
क्योंकि ?
खामोशियों में ही अक्सर
गहरे राज होते है ।
जुबाँ से ज्यादा मौन की भाषा
में कशिश होती है ।
जब तक मैं बोलता रहा
किसी ने नहीं सुना ।
कई प्रयत्न किये ,
अपनी बात समझाने
की कोशिश करता रहा
चीखा चिल्लाया गिड़ गिड़ाया
प्यार से समझाया, हँस के रो के
सारे प्रयत्न किये पर कोई समझ
ना पाया ।
पर अब मै मौन हूँ
किसी से कुछ नहीं कहता
ना कोई शिकवा ना शिकायत ।
पर अब बिन कहे सब मेरी
बात समझ जाते जाते हैं
लोग कहते हैं,कि मेरी खानोशी
बोलती है।
*अब सोचता हूँ व्यर्थ बोलता रहा
मौन में तो बोलने से भी ज्यादा
आवाज होती है*