*मौत से नज़रें मिलाना आ गया*
2122 2122 212
दर्द दिल का फ़िर लबों पर आ गया
याद जब गुज़रा ज़माना आ गया
फूल को दिल में बसाया था मगर
ख़ार से दामन सजाना आ गया
राज़ जो सबसे छिपाते हम रहे
हर जुबां पर बन तराना आ गया
अब तलक तो ग़म ही हमको थे मिले
है खुशी का पर खज़ाना आ गया
ज़िंदगी से हम हुए नाशाद थे
मौत से नज़रें मिलाना आ गया
धर्मेन्द्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”