Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
17 Feb 2017 · 10 min read

मौत खरीदता युवक

मौत खरीदता युवक

एक बार मैं एक ट्रेन से कहीं बाहर से आ रहा था । अचानक एक 15-16 साल का लड़का मेरे पास हांफता हुआ आया और मेरे पास आकर खाली सीट देखकर कहने-
भाई आप कौन हैं ? क्या इस सीट पर मैं बैठ सकता हूं ।
हां भाई, आईये, बैठिये । मगर आप अपना नाम तो बताओ ।
वह युवक बैठ गया और एक गहरी सांस लेते हुए । हां तो अब बोलो आप क्या कह रहे थे ?
भाई आप अपना नाम बतायें ।
मैंने सोचा यह यूपी ऐसा ही राज्य है और यहां पर तो चोरों-डाकुओं की कुछ घाटियां भी हैं । कहीं उन चोरों में कोई ठग तो नही जो मुझे ठग रहा हो । मैंने सोचकर कहा, क्या करेगा तु मेरा नाम पूछ कर ?
वो नवयुवक चुप रहा थोड़ी देर बाद-‘भाई साहब आप जरा मेरा ये बैग पकड़़े तो मैं पेशाब कर आऊं । वह बैग देकर पेशाब करने चला गया ।
मैंने वह बैग उसकी ही सीट पर रख दिया । तभी मेरे दिमाग में आया कि -‘इस बैग में क्या हो सकता है । मलिन सा फटा-पुराना बैग तथा जिसकी डसें भी फटी-पुरानी तथा टूटी हुई थी । मैंने उसकी चैन को जरा सा सरका दिया । और अन्दर झांककर देखा तो मेरी आंखें फटी-की-फटी की रह गई । मैंने तुरंत ही बैग की चैन को बंद कर दिया । मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा कि-कहीं यह पुराने कपड़ों में कोई चोर या डाकू तो नही । मेरा ध्यान मेरे बैग पर गया । जिसमें मेरे पास ढाई हजार रूपये थे । वह बिल्कुल सैफ था । इतनी देर में ही मेरा स्टेशन आ गया । मैं उठा, मगर शायद उस नवयुवक का ध्यान रेल के दरवाजे से खड़े होकर भी मुझ पर ही था । उसने मुझ से इशारा किया । अपना बैग लाने को । मैनें एक हाथ में अपना तथा दूसरे हाथ में उसका वह मैला-कुचैला बैग उठा लिया । कुछ ही देर में हम दोनों रेल से नीचे उतर कर प्लेटफॉर्म पहंुचे । हमारे उतरते ही रेल ने एक सीटी बजाई और चल पड़ी । कुछ ही देर में रेल जा चुकी थी । उस स्टेशन पर केवल हम ही दो यात्री उतरे थे । और कोई नही । यहां तक की वहां पर कोई टिकटघर भी नही था । बिल्कुल सुनसान और विरान जगह थी वह ।
यार यहां यह कैसा गांव है । जहां पर काई भी नही उतरा । केवल हम और आप ही उतरे हैं । मैंने उस नवयुवक से पूछा ।
मुझे चलने का इशारा करते हुए उस नवयुवक ने कहा कि – यह गांव आज से लगभग 10 साल पहले ही बाढ़ के कारण उजड़ चुका है । जब मैं पांच साल का था । इतना कहकर वह चुप हो गया । और फूट-फूट कर रोने लगा । मेरा हृदय विह्वल हो उठा । उस द्रवित हृदय में इतनी हिलोंरे उठी कि आंखें भी उन्हें रोक न सकी । और मेरी आंखों से टप-टप आंसूं बहने लगे ।
तभी उस युवक ने कहा भाई तुम क्यों रो रहे हो ।
मैंने कहा-भाई इस गांव से मेरा भी नाता रहा है । तभी मैं अपने मुख से कहने लगा । भाई साहब आज से 30 साल पहले जब इस गांव से गया था तो मेरी उम्र करीब 10 साल की रही होगी । यहां का मुखिया बहुत ही नीच किस्म का व्यक्ति था । उसने यहां के लोगों का खुब शोषण किया । उसके इसी शोषण से तंग आकर मेरे मां-बाप ने प्राण त्याग दिए । मैं उनका दाह-संस्कार आदि कर अपनी जमीन जो कि उस मुखिया के पास गिरवी रखी थी छोड़कर यहां से दूर विदेशों में चला गया । वहां पर लोगों की इज्जत होती थी । और वहां के लोगों ने मुझे भी इतनी इज्जत दी कि मैं जल्दी ही यहां इस अपने पुराने गांव की यादों को भूल गया । और उनका यह उपकार भी मैं कभी नही भूल सकता । वहीं पर रहकर मैंने शादी भी कर ली । आज मेरे पास दो बेटे और दो बेटियां है । सभी खुश रहते हैं । बच्चों ओर बीबी की दबाव में आकर मैं आज यहां पर अपनी पैतृक जमीन को छुड़ाने के लिए आया हूं । लेकिन यहां आकर पता चला कि यह गांव बाढ़ के कारण उजड़ चुका है और फिर से मेरी आंखों में अश्रुधार फूट पड़ी । मगर जल्दी ही उन आंसूओं को पोछकर कहा । दोस्त तुम यहां क्या अकेले ही रहते हो । और तुम्हारा पिता भी क्या उस मुखिया का कर्जदार ही था । क्या तुम चोरी करते हो । तुम्हारे बैग में इतना पैसा कहां से अया । एक ही मिनट में मेरे मुुंह से सारे सवाल न जाने कहां से निकल गये । फिर एकाएक चुप हो कर उसके उत्तर का इंतजार करने लगा । वह अचम्भित आंखों से मेरी तरफ देख रहा था । मेरे चुप होने पर उसने बोलना आरम्भ किया । ओर कहने लगा ।
मैं उसी जमींदार मुखिया का बेटा रोहित हूं । 10 साल पहले जो बाढ़ आई थी । उसी में मेरे मां-बाप और पूरा का पूरा गांव बह गया । और मैं एक पेड़ की जटाओं में उलझ कर रह गया । हमारा घर कुछ ऊंचाई पर था इसलिए वह डूब न सका । वहां पर जो भी झोपड़-पट्टी थी सभी उसी बाढ़ में बह चुकी थी । हमारा मकान ही ऐसा था जो कि मेरे पिता ने गरीबों का खून चूस-चूस कर पक्का बनाया था । वह उस बाढ़ में न बहा । कुछ दिन बाद जब पानी सूखा तो मैं गांव के अन्दर गया । और देखा कि वहां गांव की जगह एक हमारा ही मकान शेष बचा था । न कोई पशु , न कोई आदमी और ना ही किसी के घर की एकाध ईंटे । बची थी तो केवल उस गांव की अमिट यादें । मैं वहां फूट-फूट कर रोने लगा । तभी मेरे मन में विचार आया कि चल मैं यहां से निकल लूं । मैं घर के अन्दर गया तो देखा कि जिस तिजोरी में मेरे पिताजी पैसे रखते थे । वह बिल्कुल ठीक-ठाक उसी जगह पर रखी हुई थी । परन्तु कुछ धुमिल जरूर हो गई थी । मैंने उसे खोला और उसमें जो रूपये और पैसे थे । वो सभी निकाल कर मैंने इस फटे से बैग में रख लिए । और यहां से चल पड़ा । मैं उस रेलवे स्टेशन पर पहुंचा । जिस पर अभी हम उतरे थे । वह आज भी इस गांव के सम्मान के लिए यहां पर रूकती है । इस लिए मैं करीब दो महीने तक इस उजड़े हुए गांव में रहा, और फिर पानी सूखने के बाद फिर से यहां पर रेल चलने लगी । मैं उस रेल में बैठकर वहां से दूर निकल गया । मेरे पास करीब एक लाख रूपये थे । रेल में बैठ कर एक गांव में गया । वहां जाकर मैंने एक आदमी से कहा कि -भाई साहब आप मेरा यह बैग लें लें ओर दो-तीन दिन का खाना दे दें । उस आदमी ने मुझे खाना दिया और कहा कि-भाई साहब लाओ अब यह बैग मुझे दे दो । मैं उन रोटियों को खाने लगा । तभी पता नही उस युवक के क्या मन में आई वह मुझसे कहने लगा – अरे तु सोचता है कि यह बैग देकर तु इतना खाना ले जाएगा । ला मेरी रोटी मुझे वापिस कर दे । मैनें कहा कि -भाई इस बैग में रूपये हैं कि तु सारा जीवन आराम से खाना । मगर उल्टे उस आदमी ने मेरा बैग फेंक दिया और मेरे हाथों से रोटी का वह टुकड़ा भी छिन लिया जो कि मैं जल्दी-जल्दी में खा जाना चाहता था । वह कहने लगा कि -मुझे यह हराम का पैसा नही चाहिए जा अपना पैसा वापिस ले जा । यह कह कर वह रोटी छीन कर वहां से चला गया । मैं भूख का मारा हुआ उसे देखता ही रह गया फिर गांव में आगे बढ़ा तभी मुझे एक बूढ़ा बाबा मिला । तभी मैंने कहा कि -बाबा आप मुझे दो रोटी दे दें और यह बैग ले लें । उसने कहा कि-क्या है इस बैग में । इस बैग में पैंसे हैं पूरे एक लाख रूपये हैं बाबा । मैनें आत्मविश्वास के साथ कहा ।
तभी बूढ़ा बाबा कहने लगा -बेटा पैसा मनुष्य का सुखचैन छीन लेता है । अतः मैं इतना पैसा लेकर सुख चैन नही खोना चाहता । और भगवान की कृपा से जो हमें दो वक्त की रोटी भगवान देता है । बहुत हैं । वह बूढ़ा अंदर गया और एक रोटी लेकर आया । मुझे देकर कहने लगा कि ले खा ले और पानी उस घड़े से पी लेना । मैंने रोटी खा ली और पानी पी लिया । उस एक रोटी ने मेरी भूख को और भड़का दिया । मैं वहां से चल दिया । आगे जाकर मैं उस गांव के मुखिया के पास गया और कहने लगा कि – महाराज आप यह बैग रख लिजिए ओर कोई काम बता दीजिए । आप रोज मुझे खाना दे दीजिए । मालिक मैं आपका हर काम कर दिया करूंगा ।
इस बैग में क्या है । मुखिया ने कहा । तु आया कहां से है ?
मैं पास ही के एक गांव से आया हूं । उसक गांव में मेरे पिता एक मुखिया होते थे । तथा इस बैग में एक लाख रूपये हैं । मैने दृढता से कहा ।
मगर वह गांव तो पानी में बह गया था फिर तु कैसे जिंदा बचा । मुखिया बोला ।
महाराज मैं एक बरगद की जड़ में उलझ गया था । तथा पानी सूखने पर उस पेड़ की जड़ों निकला उसी पेड़ ने मेरी रक्षा की, मैंने कहा ।
उस गांव का मुखिया तो बड़ा शठ, धोखेबाज, मजदूरों पर कहर ढाने वाला था । तु उसी मुखिया का पुत्र है । तो अभी इस गांव से निकल जा और इस बैग को भी ले जा । वरना इस गांव के युवकों को यदि पता चल गया तो तुझे न मारेंगे और न छोड़ेगंे । वहां के मुखिया ने कहा । मेरी भूख ने मुझ झकझोर कर रख दिया । मैं वहां से चल कर गांव से बाहर बने एक घर में गया वहां जाकर मैंने एक युवक से कहा -भाई मुझे एक छोटी सी रस्सी दे दो । युवक ने पूछा – क्या करोग ?
मैं फांसी लगाकर मरना चाहता हूं और ये रूपये जो इस बैग में वे सभी तुम ले लेना मैंने कहा ।
वह युवक कहने लगा कि -क्यों भाई मुझे भी फांसी दिलाने का विचार है । नही-नही मैं बाल-बच्चों वाला हूं । जब तक हाथ सलामत हैं । मैं मेहनत करके खा लूंगा । तू ये पैसे किसी और को देना । पता नही कहां-कहां से हराम की कमाई लाया होगा । जा, नही है मेरे पास रस्सी वस्सी । उस युवक ने गुस्से से लाल आंखें निकालते हुए कहा । मैं चुपचाप वहां से निकल पड़ा और रेलवे स्टेशन पर फिर से लौट आया । तभी एकाएक मैंने सोचा कि यह रूपया ही न तो मुझे भोजन खाने देता और न ही सुखचैन से रहने देता । और तो ओर रूपये देकर भी मौत जैसी भयानक चीज भी मैं नही खरीद सकता । मैं कैसा अभागा हूं मैंने वह पैसा एक तरफ रखा और रेल पटरी पर लेटते हुए कहा कि हे भगवान अब तो मुझे मौत दे ही दो । क्योंकि पैसे मैने अपने हाथों से छोड़ दिए हैं और मेरी आंख लग गई तभी रेल आई और सिर धड़ से अलग करके चली गई । मेरी मौत हो गई । मेरी आत्मा मेरा शरीर छोड़कर निकल गई । मैं फिर से उस पास में पड़े रूपयों से भरे बैग को उठाकर चल दिया और सोचा कि अपने पिता जी का जो कर्ज है वह मैं चुका कर ही रहूंगा । जिससे उनकी और मेरी भटकती हुई आत्मा को शांति मिल सकें । मैं मर चुका हूं मगर मेरा रूपयों से भरा यह बैग आज भी मेरे साथ है । ये वे ही गरीबों के रूपये हैं । जो मुझे मौत भी न दिला सके । जिन्हें कोई भी नही लेता । रोहित की आत्मा ने बिलखते हुए कहा ।
उसकी इस दर्द भरी कहानी को सुनकर मेरी आंखों में फिर से एक अश्रुधार फूट पड़ी और मैं कहने लगा कि भाई मैं इन रूपयों का क्या करूंगा । जिनसे आपको मौत भी नही मिल सकी । वो मेरा क्या भला करेंगे । तभी वह युवक रोहित कहने लगा – भाई तु इन के चार हिस्से करना एक हिस्सा तु अपने पास रख लेना बाकि को गरीबों में बांट देना । इससे हमारे परिवार वालों की आत्मा को शांति मिलेगी ।
मैंने कहा नही-नही मैं ऐसा नही कर सकता ।
तभी रोहित मेरे पैरों में गिरकर रोने लगा तथा गिड़गिड़ाने लगा । उसका दुख देखकर उसे हां कह दी । तभी एकाएक ऐसा चमत्कार हुआ जिसकी मैंने कल्पना भी नही की थी । वह युवक वहां से गायब हो गया और कहने लगा कि आपका बहुत-बहुत धन्यवाद । अब मैं जा रहा हूं उस भगवान के पास । वह वहां से चला गया ।
मैं अकेला वहां खड़ा था और मेरे दोनों हाथों में बैग एक में मेरा नया बैग और दूसरे में एक मैला-कुचैला बैग । तभी मैं रेलवे स्टेशन की तरफ दौड़ कर उसे पकड़ा और तुरंत ही सीट मिल गई । सीट पर बैठा हुआ उसी आत्मा को सोचता रहा कि कुछ ही देर में मेरा गांव आ गया और वहां उत्तर लिया । मगर तभी अचानक मुझे बोझ सा महसूस हुआ । सांय के 04ः00 बच चुके थे । और मां मुझे चाय पीने के लिए बार-बार जगा रही थी । मेरा स्वपन टूटा तो देखा कि मेरा गांव सही-सलामत है । मेरे मां-बाप भी ठीक-ठाक हैं तथा जो बैग रोहित मुझे दे गया था वही नही है और ना ही वह रेलवे स्टेशन है ।

Language: Hindi
275 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
ग़र वो जानना चाहतें तो बताते हम भी,
ग़र वो जानना चाहतें तो बताते हम भी,
ओसमणी साहू 'ओश'
💐प्रेम कौतुक-283💐
💐प्रेम कौतुक-283💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
#एक_प्रेरक_प्रसंग-
#एक_प्रेरक_प्रसंग-
*Author प्रणय प्रभात*
आत्म बोध
आत्म बोध
DR ARUN KUMAR SHASTRI
दिवस नहीं मनाये जाते हैं...!!!
दिवस नहीं मनाये जाते हैं...!!!
Kanchan Khanna
समरथ को नही दोष गोसाई
समरथ को नही दोष गोसाई
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
मौत के बाज़ार में मारा गया मुझे।
मौत के बाज़ार में मारा गया मुझे।
Phool gufran
चाय पार्टी
चाय पार्टी
Mukesh Kumar Sonkar
*रावण आया सिया चुराने (कुछ चौपाइयॉं)*
*रावण आया सिया चुराने (कुछ चौपाइयॉं)*
Ravi Prakash
बीत जाता हैं
बीत जाता हैं
TARAN VERMA
तुझसे मिलते हुए यूँ तो एक जमाना गुजरा
तुझसे मिलते हुए यूँ तो एक जमाना गुजरा
Rashmi Ranjan
"जून की शीतलता"
Dr Meenu Poonia
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
लफ़्ज़ों में आप जो
लफ़्ज़ों में आप जो
Dr fauzia Naseem shad
इतना ही बस रूठिए , मना सके जो कोय ।
इतना ही बस रूठिए , मना सके जो कोय ।
Manju sagar
तेरे होने का जिसमें किस्सा है
तेरे होने का जिसमें किस्सा है
shri rahi Kabeer
बघेली कविता -
बघेली कविता -
Priyanshu Kushwaha
हिन्दी दोहा- मीन-मेख
हिन्दी दोहा- मीन-मेख
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
3207.*पूर्णिका*
3207.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
बदली - बदली हवा और ये जहाँ बदला
बदली - बदली हवा और ये जहाँ बदला
सिद्धार्थ गोरखपुरी
मुस्कान
मुस्कान
Neeraj Agarwal
पिछली भूली बिसरी बातों की बहुत अधिक चर्चा करने का सीधा अर्थ
पिछली भूली बिसरी बातों की बहुत अधिक चर्चा करने का सीधा अर्थ
Paras Nath Jha
सो रहा हूं
सो रहा हूं
Dr. Meenakshi Sharma
दिल के जख्म
दिल के जख्म
Gurdeep Saggu
सोना बोलो है कहाँ, बोला मुझसे चोर।
सोना बोलो है कहाँ, बोला मुझसे चोर।
आर.एस. 'प्रीतम'
बाल कविता: मछली
बाल कविता: मछली
Rajesh Kumar Arjun
कहीं  पानी  ने  क़हर  ढाया......
कहीं पानी ने क़हर ढाया......
shabina. Naaz
।।आध्यात्मिक प्रेम।।
।।आध्यात्मिक प्रेम।।
Aryan Raj
" ये धरती है अपनी...
VEDANTA PATEL
आजमाइश
आजमाइश
Suraj Mehra
Loading...