मोह माया का भ्रम
माया है मन का भ्रम
नहीं छोड़ती यह ताउम्र
माया में जब फंसा
मानव मन
हो गया गुलाम वह
दौलत धन
माया का नही है अंत
इसमें फंसे
मानव दानव संत
जिसने पायी
माया पर जय
उसका जीवन
हो गया विजय
मोह माया का है
विकराल जंजाल
भरष्टाचार घोटालों का
फैलाता है जाल
दूर करों जीवन से माया
सुधर जाऐगी मानव काया
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल