“मोहि मन भावै स्नेह की बोली”
मोहि मन भावै स्नेह की बोली,
सखी री! देखो आई होली।
गोरी का रंग रेशमी चोली,
लाल कपोल मिठी बोली,
कोयल गान अति प्रिय लागै,
गली-गली हुड़दंग मचाबै टोली,
सखी री! देखो आई होली।1
मन मोहक रंग खिलै चहुंओर,
बरसे गुलाल तन होय विभोर,
सखियन आवैं पिया बखाने,
मोहि निक ना लागै ठिठोली,
सखी री! देखो आई होली।2
अंतस जलै मन होय अधीर,
बसंत निरखे यौवन की पीर,
होली रंग मन मोहि सुहाएं,
पीछे पड़ै गांव के हमजोली,
सखी री! देखो आई होली।3
ब्रज की होली कहां विराजै?
कृष्ण की मुरली मथुरा में बाजै,
गोपियां लगै जस प्रीति अभागे,
बिन मोहन गोकुल की गलियां खाली,
सखी री! देखो आई होली,
मोहि मन भावै स्नेह की बोली।4