मोहल्ले में थानेदार (हास्य व्यंग्य)
मोहल्ले में थानेदार (हास्य व्यंग्य)
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हमारे मोहल्ले में जब से थानेदार साहब ने किराए का मकान लेकर रहना शुरू किया है, हमारी हालत सिर्फ हम ही जानते हैं। मोहल्ले का अपना एक व्हाट्सएप ग्रुप है जिसमें करीब अस्सी सदस्य हैं। कौन सा नया किराएदार आया ,कौन सा पुराना किराएदार गया, मोहल्ले में क्या क्या गतिविधियां चल रही हैं, सब की जानकारी व्हाट्सएप ग्रुप से पता चलती रहती है।
पिछले दिनों व्हाट्सएप पर मैसेज आया कि थानेदार साहब ने मोहल्ले में नया मकान किराए पर ले लिया है। तो धड़ाधड़ बधाई के संदेश थानेदार साहब को प्राप्त होने लगे । थानेदार साहब का फोटो और जीवन परिचय ग्रुप में छपा और थानेदार साहब ने सभी को नमस्कार लिखकर भेजा। हमारे लिए भी यह मजबूरी थी। हमने भी कहा कांग्रेचुलेशन। ज्यादातर लोगों ने कांग्रेचुलेशन लिखा था, इसलिए हमने भी यही लिखना उचित समझा। वैसे थानेदार साहब एक बार आमने- सामने आए तो हमने उन्हें हिन्दी में बधाई ही कहा।
दिल में दर्द था- एक लेखक के लिए और वह भी खासतौर पर हास्य कहानी लेखक के लिए यह सबसे मुश्किल की बात होती है कि उसके मोहल्ले में थानेदार आ जाए। थानेदार मोहल्ले में आया नहीं कि थानेदार से संबंधित कोई भी बात कथा के माध्यम से लिखने पर समझ लीजिए अघोषित प्रतिबंध लग गया ।
मेरी कई हास्य कहानियां मोहल्ले के व्हाट्सएप ग्रुप में प्रकाशित होती रही हैं। अब जब थानेदार साहब खुद पाठक हैं, तब आप समझ सकते हैं कि पुलिस वालों के या थानेदार के बारे में कुछ भी लिखना खतरे से खाली नहीं है । जरा सा गलत लिख गया और उन्हें बुरा लग गया हालांकि हमने भले ही उनके बारे में नहीं लिखा है लेकिन फिर भी अगर उन्होंने यह सोचा कि हमने उनके बारे में सोच कर लिखा है तो पता नहीं क्या-क्या हो जाए।
ऐसा ही एक अनुभव जो नेता जी थे उनके बारे में हमारा रहा है। नेताजी छह साल तक हमारे मोहल्ले में किराए के मकान पर रहते रहे। यह तो भगवान की कृपा हुई कि बाद में वह किसी अच्छी नेतागिरी के पद पर पहुंच गए और उन्होंने साल- दो साल में इतना पैसा कमा लिया कि एक नई कोठी खरीद ली और हमारा पुराने टाइप का मोहल्ला छोड़ कर चले गए । वरना जब नेता जी हमारे मोहल्ले में रहते थे उन्हीं दिनों हमने एक हास्य कहानी लिखी, जिसमें एक जगह आता था कि :-“नेता जी ने अपनी आंखें लोमड़ी की तरह धूर्तता से नचाईं, फिर रिश्वत की रकम जेब के हवाले की और जब रिश्वत- प्रदाता ने कहा कि साहब हमारा काम कितने दिन में हो जाएगा तो नेताजी ने गुर्राते हुए जवाब दिया कि हम कोई मृत्यु प्रमाण पत्र थोड़े ही बना रहे हैं जो तुम्हें समय सीमा निर्धारित करके बता दें । सुनकर रिश्वत- प्रदाता गिड़गिड़ाने की मुद्रा में आ गया ।”
जब यह हास्य कथा का अंश नेताजी को व्हाट्सएप ग्रुप पर पढ़ने को मिला तो सीधे-सीधे तो नेता जी ने कोई नाराजगी जाहिर नहीं की लेकिन अपने एक चमचे की मार्फत हमें चेतावनी जरूर दी कि आइंदा से हमारे बारे में कोई उल्टी-सीधी खबर मत छापना। हमने उसको बहुत समझाया कि भैया हमने नेता जी के बारे में कुछ नहीं लिखा है जो हम सोच रहे हैं वह उस टाइप की सोच नहीं है जैसा नेता जी सोच रहे हैं । लेकिन चमचे ने कहा कि लोमड़ी की तरह आंखें नचाना, यह नेता जी पर सीधे-सीधे आक्षेप है। और काम जल्दी करने के लिए कहने पर उल्टा- सीधा सुनना ,यह सब भी नेता जी की ही आदत है जो सीधे-सीधे उन पर फिट बैठती है ।
नतीजा यह निकला कि हमने नेताओं पर लिखना बंद कर दिया और जब नेताओं पर लिखना बंद हुआ तो समझ लीजिए कि हमारा आधा लेखन तो कचरा पेटी में चला गया। हर लेख में, हर हास्य कहानी में कहीं न कहीं नेता जी विराजमान थे।
अब हम इंतजार कर रहे थे कि कब थानेदार साहब का तबादला हो और वह यहां से जाएं। तभी किसी ने हमारे घर के दरवाजे की घंटी बजाई ।देखा ,चार लोग मौहल्ले के खड़े हुए हैं। मोहल्ले वालों के हाथ में पर्चा था , रोनी सूरत थी। एक ने आँसू रोककर बताया कि थानेदार साहब का तबादला हो गया है ,मोहल्ला छोड़कर जा रहे हैं।
हमने कहाः” तो ? ”
उन्होंने कहा :”तो क्या ? आपको कोई दुख नहीं हुआ। हम लोग थानेदार साहब को एप्लिकेशन देकर निवेदन करने आए हैं कि वह मोहल्ला छोड़कर न जाएं। तबादला रुकवा लें। आपको दुख नहीं हो रहा जाने का ? ”
हमने उनसे जोरदार आवाज में कहा ः”हमें भी बहुत दुख हो रहा है।”
हालांकि हमारा दिल खुशी से बल्लियों उछल रहा था और हमें लग रहा था कि हमारे सुनहरे लेखन के दिन फिर से वापस आ गए हैं।
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रचयिता रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा,रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451