मोहब्बत की मुझको सज़ा तो न दोगे
मोहब्बत की मुझको सज़ा तो न दोगे
कहीं तुम नज़र से गिरा तो न दोगे
कभी मुझको दिल से भुला तो न दोगे
कभी याद बनकर रुला तो न दोगे
दिये हैं जहाँ को सदा फूल तुमने
मुझे ख़ार वाली रिदा तो न दोगे
बनाया तुम्हें नाख़ुदा आज अपना
कहीं मेरी कश्ती डुबा तो न दोगे
मेरी ज़िन्दगी की ख़ुशी छीनकर तुम
सुकूँ मेरे दिल का मिटा तो न दोगे
हक़ीक़त में मुझसे ख़फ़ा हो गये हो
कहीं मेरे सपने बहा तो न दोगे
सदाक़त की बातें जो तुमसे कही हैं
कहीं ख़ाक में तुम उड़ा तो न दोगे
जलाया जो ‘आनन्द’ वो डर से जहाँ के
चराग़े-मोहब्बत बुझा तो न दोगे
– डॉ आनन्द किशोर