मोहब्बत का यहाँ पर वो फ़साना छोड़ जाता है
मोहब्बत का यहाँ पर वो फ़साना छोड़ जाता है
वो हिंदुस्तान में अपना ज़माना छोड़ जाता है
जहाँ लाखों करोड़ों लोग अब भी गुनगुनाते हैं
वो अल्लामा यहाँ अपना तराना छोड़ जाता है
उसे काफ़ी मोहब्बत है मगर वो कह नहीं पाता
वो उसको चाहता है पर जताना छोड़ जाता है
परिंदे पेड़ कटने पर भला फिर ख़ुश दिखें कैसे
यहाँ इंसान भी हँसना हँसाना छोड़ जाता है
नहीं दिखती हो बूढ़े बाप की जिनको परेशानी
वो बूढ़ा बाप फिर दुख भी बताना छोड़ जाता है
तेरा जो कुछ नहीं लगता तुझे उससे शिकायत है
यहाँ भाई भी रिश्तों को निभाना छोड़ जाता है
हमीं ने जिस के पैरों से कभी काँटे निकाले हों
वो ही फिर राह से पत्थर हटाना छोड़ जाता है
~अंसार एटवी