मोहब्बत का बुखार
मोहब्बत का बुखार
मोहब्बत सा हमने, न बुखार देखा,
खोलकर न पुराना, अखबार देखा,
कई आशिकों की किताब पढ़ी,
हीर रांझा सा न तलफ़गार देखा,
जो सांसो से धड़कन में उतर जाये,
ऐसा न किसी मे, हमने खुमार देखा,
है कैद हम दगाबाजों की बस्ती में,
यहां न कोई हमने, वफादार देखा,
अब मोहब्बत की आस कहा बची,
दिल को सबके हमने, बिमार देखा,
क्या खूब बनाया इंसानो को “ऐ खुदा”
तुमसे न हमने कोई कलाकार देखा,
– विनय कुमार करुणे