*मोहब्बत का दस्तूर ऐसा *
मुद्दतों से चला आ रहा है ,मोहब्बत का दस्तूर ऐसा।
है आया क्यों दिल में आज,ये गमगीन फितूर ऐसा।।
सारा जहां हमारा है यह कहना लाजिमी तो है मग़र
कट जाए सफर हंसते हुए,ना हो वो कोई तूर ऐसा।।
तुम मेरे हो कौन?सुनके चोट लगती है ईंट की तरह
हुआ कौन है मुझसे तुमहे ,कोई दर्द भरा कसूर ऐसा।।
ठहरे मेरी मोहब्बत झूटी ग़र तो लानत है जिंदगी भर
पिलायी होगी बिसभरी तुमहे,मुझे कहाँ सबूर ऐसा ।।
देंगे कोई निशां ऐसा की पहचान हो दुनिया में हमारी
बनाके दिखाएंगे रिश्ता सफ़ऱ का, होके मैसूर ऐसा ।।
भरोसा नहीं है साहब हमें दीवानगी पे,सच्चाई क्या ?
खुलके रहना दिले भाता है ,असलियत में हुजूर ऐसा।।