मोहन से प्रेम
मोहन से प्रेम
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बैठी हूं राह में कान्हा तेरे इंतज़ार में,
कब आओगे दरश तो दे दो,
नींद नहीं मेरी अंखियों में।
छोड़ा घर द्वार मैंने, डूबी हूं भक्ति में तेरी
तेरा ही सुमिरन करती,हर पल सांसें मेरी।
मुझ विरहन को मुरलिया बना लो,
लगा के रखना अधरों से।
हे! वंशीधर मेरी पीड़ा तुम ही जानो,
सजा के रख लो हृदय से।।
गली-गली में तुझको खोजा,
पर !मिले नहीं मुरली वाले।
तुम तो मेरे नैन बसे हो,
में तुमको खोजूं मतवाले।।
में तो जोगन हो गई, तेरे प्रेम में
सांवरिया।
तुम बिन कुछ न भावे मुझको,
और न ये रंगीली दुनिया।।
इकतारा को हाथ लिए,खो बैठी में
सुध अपनी।
दर-दर भटकूं में भक्तन,तेरी दीवानी।।
सुषमा सिंह*उर्मि,,