मोहन का परिवार
|| मोहन का परिवार ||
शहर से दूर एक बस्ती थी। वह बस्ती बहुत ही पिछड़ा था और वहां के लोग भी बहुत ही पिछड़े थे। शिक्षा के मामले में तो उन लोगों का पिछड़ापन बहुत ज्यादा था। शिक्षा से तो उन लोगों का दूर – दूर तक नाता नहीं था। हालांकि उसी बस्ती में एक सरकारी विद्यालय बाद में खुला था। जिसमें उस बस्ती के बच्चे पढ़ने आते थे। सौभाग्य से मेरा उसी विद्यालय में एस ई पी के तहत योगदान हुआ।
एक दिन की बात है कि प्रति दिन के अनुसार मैं उस विद्यालय के पॉंचवा वर्ग में पढ़ाने के लिए चला गया। उस वर्ग में एक बच्ची थी, जिसका नाम अनन्या था। जो पढ़ने लिखने में ठीक – ठाक थी अर्थात अन्य बच्चों से पढ़ने लिखने में तेज थी। वर्ग में गए तो देखें की अनन्या के चेहरे पर उदासी छाई थी। उससे मैं उदासी का कारण पूछा तो उसने कहीं कि गुरु जी हम पढ़ना चाहते हैं, तब तक मैंने बोला – तुम पढ़ तो रही हो। तो उसने कहीं गुरु जी हम तो पढ़ रहे है। तब तक मैंने फिर बोला तो क्या तुम्हारे घर वाले पढ़ने नहीं देना चाहते हैं? तो उन्होंने कही नहीं गुरु जी पढ़ने भी दे रहे हैं और पढ़ाना भी चाहते हैं पर हमारे घर का माहौल पढ़ने लायक नहीं है। मैंने कहा ऐसा क्यों? तो उसने कहीं कि गुरु जी क्योंकि मैं जब शाम में पढ़ने के लिए बैठती हुई उसी समय पिता जी और चाचा जी काम पर से घर आएं हुए रहते हैं और दारु पिए हुए रहते हैं और आपस में बोल चाल करने लगते हैं, तो कभी मॉं से नोंक – झोंक करने लगते हैं, तो कभी – कभी गाली – गलौज करने लगते हैं। कभी – कभी तो हाथा – बाही भी कर लेते हैं और सुबह में फिर एक साथ खाना खाकर एक साथ काम पर चले जाते हैं। ऐसा एक दिन का नहीं है बल्कि रोज – रोज का करा धरा है। इससे मेरी रात की पढ़ाई बाधित हो जाती है और मैं पढ़ नहीं पाती हूं। गृह कार्य के तो बातें छोड़ दीजिए।
ऐसी स्थिति को मैं सुनकर परेशान हो गया कि पहली ऐसी यह बच्ची है जो पढ़ने के लिए घर वालों से दुखी हैं और इतने उम्र में ही सोचने समझने की बुद्धि हासिल हो गई है। इस बात को सोच कर मैं चिंता में पढ़ गया और सोचने लगा कि करूं तो मैं क्या करूं?
थोड़े ही देर बाद मैंने कहा कि तुमको हिन्दी तो पढ़ना आता है, उसने हां में जवाब दिया। फिर मैंने कहा की तुमको कुछ करना नहीं बस मैं एक कविता लिखा रहा हूं, उसको घर पर जोर – जोर से पढ़ना है और वह भी जब तुम्हारे पापा और चाचा घर पर रहे तब। और रोज – रोज पढ़ना है। फिर मैंने कविता लिखाई जो इस प्रकार के है;
एक मोहन का परिवार था,
जो एक बस्ती में रहता था।
वह बस्ती बहुत पिछड़ा था,
वहां के लोग भी बहुत पिछड़ा था।।
दिन भर कमाते थे,
शाम को दारु पीकर आते थे।
मोहन का परिवार भी ऐसा ही था,
रोज का पेशा ऐसा ही था।।
फिर भी उस गांव में सरकारी स्कूल था,
उस बस्ती के बच्चों के अनुकूल था।
मोहन उसी विद्यालय में पढ़ने जाता,
दिन पर दिन पढ़ाई में आगे बढ़ता।।
एक दिन गुरु जी ने गृह कार्य दिया,
मोहन ने उसे पूरा नहीं किया।
दूसरे दिन गुरु जी ने फिर गृह कार्य दिया,
मोहन ने उसे भी फिर पूरा नहीं किया।।
लगातार ऐसी प्रक्रिया चलती रही,
मोहन की पढ़ाई घटती रही।
मोहन अब उदास था,
गुरु जी के पास था।।
गुरु जी ने कारण पूछा उदासी का,
मोहन, घर का माहौल खराब रहता सांझी का।
रोज – रोज पापा चाचा पीके आते शराब है,
जब मैं पढ़ने बैठता हूं माहौल करते खराब है।।
कभी गाली-गलौज तो कभी करते धक्का-मुक्की है,
रोज इनके झगड़े के चलते मां सो जाती भुखी है।
अब तो मुझे पढ़ने का मन नहीं करता है,
जाऊ मैं भी मजदूरी करने यही जी करता है।।
तभी अचानक गुरु जी ने मोहन को दिया ठोक,
मोहन अपने वाणी को दिया वहीं रोक।
गुरु जी ने कहा मोहन तुम्हारे घर फोन है,
मोहन ने जवाब दिया जी गुरु जी फोन है।।
अब तुम्हारे पापा चाचा पीकर करेंगे जदी झगड़ा,
112 नम्बर डायल करना झटका लगेगी तगड़ा।
बात सारा बताना जब फोन पुलिस उठाएगी,
सारा झगड़ा खत्म होगा जब तीन महीने जेल खठाएगी।।
इतने में आज मोहन की स्कूल की हो गई छुट्टी,
आज तो मोहन सुलझा के रहेगा अपने घर की गुत्थी।
घर पर मोहन शाम होने का इंतजार करने लगा,
पुलिस को बुलाने के लिए फोन खोजने लगा।।
अगर आज पापा चाचा पीकर झगड़ा करेंगे,
पुलिस को बुलाकर आज जेल उन्हें भेजेंगे।
ऐसा हम नहीं मोहन सोच रहा था,
अपने घर की दशा वह बता रहा था।।
इस कविता को जब अनन्या पढ़ रही थी, उस समय उनके पापा और चाचा दोनों सुन रहे थे। पर पहले दिन पढ़ी पर ज्यादा कुछ परिवर्तन नहीं दिखा। दूसरे दिन पढ़ी तो थोड़ा परिवर्तन दिखा। वहीं जब तीसरे दिन इस कविता को पढ़ी तो पूरा परिवर्तन ही हो गया। उसके पापा और चाचा समझ गए की बेटी अब होशियार हो गई है और हमलोगों को एक तरह से चेतावनी दे रही है। नहीं सुधरने पर सच में जेल भेज सकती है। इस तरह से वे लोग झगड़ना बंद कर दिए। अब उसके घर पर किसी भी प्रकार का कोई झगड़ा झंझट नहीं होता था। गाली-गलौज और धक्का-मुक्की तो दूर की बात है। इससे अनन्या बहुत खुश हुई और अब घर पर शांत माहौल रहने के कारण अनन्या अपनी पढ़ाई में गति लाने लगी।
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कवि: जय लगन कुमार हैप्पी