मोम की गुड़िया
पिघल जाऊँ मैं इस कदर,
बदल जाए मेरी सूरत,
हमें इतनी तपिश ना दो,
कि मैं हूँ मोम की गुड़िया।
बड़ी गर्दिश में रहते हो,
तुम्हें फुर्सत नही हमदम,
अजी! हो बाख़बर हमसे,
कि मैं हूँ मोम की गुड़िया।
रहूँ महफ़िल में या तन्हा,
चरागों सी धधकती हैं,
तेरी उन यादों से कह दो,
कि मैं हूँ मोम की गुड़िया।
हज़ारों ख़्वाहिशों को दफ्न
करके बढ़ चली लेकिन,
मैं जलती हूँ चरागों सी,
कि मैं हूँ मोम की गुड़िया
कि ताकत है नही हममें,
करूँ संघर्ष कैसे मैं ?
ये अंतर्द्वंद्व है मेरा,
कि मैं हूँ मोम की गुड़िया।
@स्वरचित व मौलिक
शालिनी राय ‘डिम्पल’✍️