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13 Jun 2023 · 1 min read

मोबाईल नहीं

दन्नू घर पर बैठा- बैठा,

बस बैठा ही रहता था ।

बैठे बैठे सारा दिन,

मोबाइल चलाता था ।

इक दिन दादाजी ने सोचा ,

दन्नू को समझाता हूँ।

इसको आज जगत लगाकर,

बाहर घुमाकर लाता हूँ,

दादा बोले दन्नू बेटा,

तुमको कुछ बतलाना है ,

एक खिलौने वाला आया,

चलो खिलौना लाना है ,

सुना खिलौने का जब नाम,

दन्नू ने छोडा सब काम,

चट से वो तैयार हुआ,

दादाजी के साथ गया ,

हाथ पैर के चलने से ,

तन मे हलचल होती थी,

हवा भी छूकर जाती थी,

उसका मन हरषाती थी,

शुद्ध हवा कमाल लगी ,

ज्योही उसके गाल लगी ,

मन भी इतना खुश था कि,

आज सडक कमाल लगी ,

देख रहे थे ,दादाजी,

समझ रहे थे दादाजी,

उसे दिलाया एक खिलौना ,

जो सुर मे गाता था गाना ,

दादाजी ने बोला दन्नू,

कल को भी हम आयेंगे,

मै तो बिलकुल हू तैयार,

आज की सैर थी मजेदार,

आज समझ मे आया है ,

कुदरत मे जो समाया है ,

वो मोबाइल मे गंवाया है ,

अब तो रोज सैर करूंगा ,

मोबाइल दास नही बनूगा।

4 Likes · 1 Comment · 450 Views
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