मोबाइल, मोहब्बत (कुण्डलियां)
“मोबाइल ”
मोबाइल का देख लो, कैसा चढ़ा बुखार।
बच्चों पर भी हैं चढ़ा, मोबाइली खुमार।
मोबाइली खुमार, कोई भी बच न पाया।
हुये सभी बीमार, जो सम्पर्क में आया।
लम्बी लगी कतार, सारे मारते स्टाइल।
हर घर में मेरे यार, हैं दो चार मोबाइल।
“मोहब्बत ”
मोहब्बत के नाम पर, जख्म दे रहे लोग।
प्रेम पूजा नहीं रहा, बना प्यार अब भोग।
बना प्यार अब भोग, सभी धोखा हैं देते।
कैसा आया ट्रेंड, स्वार्थ सिद्ध कर लेते।
कहे राम”कविराय, प्यार सच बने इबादत।
करो न एेसा प्यार, हो बदनाम मोहब्बत।
स्वरचित
रामप्रसाद लिल्हारे “मीना “