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15 May 2024 · 1 min read

ये किसकी लग गई नज़र

रचना नंबर (।7)

ये किसकी लग गई नजर

कहाँ है मेरा सुंदर नगर
हो गया शापित शहर
कहाँ गया खुसुर-पुसुर
ये कौन ढा रहा कहर
ये किसकी लग गई नज़र
जो कभी थे हमसफ़र
साथ में गुज़र-बसर
चिड़ियों की चटर-पटर
मुंबई बन गया शहर
ये किसकी लग गई नज़र
बेटियां मानो जिगर
प्यार पाती और कदर
लोलुप हुए सारे भ्रमर
हर कली गई सिहर
ये किसकी लग गई नज़र
पवन बहे जैसे लहर
हर ज़िन्दगी थी बेखबर
निशा सदा नहीं सहर
बज गया अंतिम बजर
ये किसकी लग गई नज़र
क्यूँ कहे अगर-मगर
जाना नहीं इधर-उधर
सारे बहाने छोड़कर
दिल कहे कि कर गुज़र
ये किसकी लग गई नज़र
न हो यहाँ कभी गदर
पर्यावरण का हो असर
रिश्ते रखें सहेजकर
बचाओ बेटी हर पहर
ये कौन ढा रहा कहर
ये किसकी लग गई नज़र

सरला मेहता
इंदौर
स्वरचित

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