मॉर्निंग वॉक
बस यूं ही,
कभी सुबह की
ठंडी-ठंडी धूप में
निकले हों साथ-साथ,
नंगे पैरों ही
ओस में भीगी दूब पर,
ना आंखों में सपनों का भार हो,
ना पैरों पर बोझ कोई,
बहते रहें कुछ पल यूं ही
बहते रहें, जैसे
बहे मुक्त आकाश,
जैसे बहे एक विहग
फैलाये अपने पाश,
जैसे बहे एक मुक्त पत्ती
नदी की प्रचंड-शांत धारा के साथ,
जैसे बहे मदिर पवन
मखमली छुअन के साथ,
चलो आज हो आते हैं
कुछ ऐसी ही मॉर्निंग वॉक।
(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”