मै हूं एक मिट्टी का घड़ा
मै हूं एक मिट्टी का घड़ा,
सड़क किनारे मै हूं पड़ा।
बुझाता हूं मै सबकी प्यास,
कुम्हार मुझे लिए है खड़ा।।
खुदाने से खोदकर मिट्टी लाता है,
तब कहीं कुम्हार मुझे बनाता है।
बड़ी मेहनत से सुखा तपा कर,
तब कही वह मुझे बाजार लाता है
बुझाता हूं प्यासे की प्यास मै ही,
कुम्हार के बच्चो का पेट पालता हूं।
कहता नहीं मै किसी से कुछ भी,
गरीब के घर को मै ही संभालता हूं।।
ले लिया स्थान मेरा वाटर कूलरो ने
या फ्रिज मे बोतलो में समा गया हूं।
फिर भी गरीब के घर की शोभा हूं मैं,
उनके दिलों में मै ही समा गया हूं।
छेद कर देते है कुछ लोग मेरे पेट में।
टोटी लगा देते है फिर उसी वे छेद में।
करता नहीं जरा भी उफ उस दर्द से,
क्योंकि ठंडा पानी जाता है सबके पेट में।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम