*मै ही हूँ आपका कोई दूजा नहीं*
मै ही हूँ आपका कोई दूजा नहीं
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तुम ही हूँ आसरा कोई दूजा नहीं,
मै ही हूँ आपका कोई दूजा नहीं।
ढूँढा सारा जहां मिल पाये ही नहीं,
तुम ही हो लापता कोई दूजा नहीं।
पागल सा घूमता हूँ दर बेदर यहाँ,
कब से हूँ बावला कोई दूजा नहीं।
सुलझा पाया न कोई दास्तां वही,
उलझा है माजरा कोई दूजा नहीं।
मनसीरत ही नहीं समझा भावना
गीला है आसमां कोई दूजा नहीं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)