मै ही क्यूं !?
मै ही क्यूं !?
जब मन चाहे मीठे पकवान
तब नज़र कर लेना उनकी तरफ
जो सोते हैँ हफ्तों भूखे पेट
और तू सोचता है मै ही क्यूं !?
जब चाह जागे मन मे ऊँची इमारतों की
तब रुख कर लेना उनकी ओर
जो छत से तक ना हुए रूबरू
और तू सोचता है मै ही क्यूं !?
जब लगे हारने लगा है तू
सवाल करना उनसे
जो हर रोज़ गिरते संभलते है
और तू सोचता है मै ही क्यूं !?
जब सताने लगे अंधियारा तुझे
पूछना रहस्य उस हुनर का
जो अंधेरे से लड़ने की ताक़त रखते हैँ
और तू सोचता है मै ही क्यूं !?
जब मांगे तुम्हारी बढ़ जाए
तो याद कर लेना उनको भी
जो तन ढकने को दूसरों की रहमत या खुदा की नेमत का इंतज़ार करते हैँ
और तू सोचता है मै ही क्यूं !?
– रुपाली भारद्वाज