मै पुरूष बोल रहा हूँ
# मैं पुरूष बोल रहा हूँ#
मैं पुरूष बोल रहा हूँ..
दिल का मर्म खोल रहा हूँ..
मैं पुरूष बोल रहा हूँ….
बचपन से सब यही सिखाते..
लडके आँसू नही बहाते..
तब से खुद मे हर गमो को घोल रहा हू..
मैं पुरूष बोल रहा हूँ.. दिल का मर्म खोल रहा हूँ…
जिस माँ बाप ने हमें है जाया..
उसका कर्ज न मिटा पाओगे..
भले जीवन भर कमाओगे..
अपने कर्मों का लेखा दिन रात खेल रहा हू..
मैं पुरूष बोल रहा हूँ…
पहन शैहरा चढा जब घोडी पर..
मन ही मन इतराता था..
अपने पुरूष होने का अलग ही नूर चहरे पर नजर आता था…
सारे कसमें वादा का मोल झोला भर भर चुका रहा हूँ.।
मै पुरूष बोल रहा हू…..
ऑफिस के अधिकारी भी दिखाते अपनी धौस..
अब तो कही नजर नही आती वो पुरानी वाली रौब..
अंदर की इस पीडा को.. अंदर अंदर डेर रहा हूँ..
मै पुरूष बोल रहा हूँ…
अपनी इक्छाओ का करता हरदम त्याग..
नही बचा जीवन में उमंग और उल्लास..
पीसता रहता चक्की मे,दिन और रात..
फिर भी शिकायत नही करता किसी से खास..।
सास बहू मे जो हुई लडाई..
समझो अपनी ही सामत आई..
कोई अपना रौब दिखाता, तो कोई अधिकार जताता..
कोनो मे खडा बच्चा अपनी अलग माँग फरमाता..
अब तो आँसू भी नही निकाल सकता..
क्यों की पुरूष कभी रो नहीं सकता..
मै पुरूष बोल रहा हूँ..
दिल का मर्म खोल रहा हूँ..
अब तो चहरा भी मेरा पहले सा न चम्मचमाता है..
दोस्त कहते है क्या यार तू फेयर हैन्सम क्यों नहीं लगता है..
थोड़ा सुन्दर बन जाऊ मै भी मन तो बढा इतराता है..
पर बीबी की शक भरी निगाहों से जाने क्यों अंग अंग थर्रा जाता है..
अब क्या कहूँ इस दिल का हाल..
मर्द हूँ इस लिए मै भी हर गम झेल रहा हूँ..
हाँ भाई #मै पुरूष बोल रहा हूँ#
✍✍✍अमृता मनोज