मै पत्नी के प्रेम में रहता हूं
विसय मैं पत्नी के प्रेम में रहता हूं ।
विधा. मुक्तक
दिनांक. १६:५:२०२४
बिन ब्याह आजाद ख्यालो में मैं उसके चक्कर. काटता हू अकेला बैठ ,मैं उसके ख्यालों में ,चाहकर भी उसकी बाट जोकता हूँ
क्योकि मैं बिन पत्नी के रहता हूँ
जेब खर्ची ना जेब में
ले उधार, खुशी उसकी सुरत पर देखता हूँ
मम्मी पापा की ऐब से
रह उदास, उदार मन से उसकी खुशी पर देखता हूँ
क्योंकि मैं बिन पत्नी के रहता हूँ
अपनो से कर मैं लड़ाई
राजकुमार बन फिरता हु
सपनों में रहकर मै कर बढ़ाई
उसकी नजर में गिरता हूँ
क्योकि मैं बिन पत्नी के रहता हूँ
फिरता हूँ पहनने का पता नही
खाने को छोड़ पहनने पता नही
मा बाप की मेहनत से खता रहा
उसकी खुशी खातिर मैं अपनो का दिल दुखा रहा
दिल तोडने मे माहिर वो मुझे अपना आइना बता रही
क्योकि मैं बिन पत्नी के रहता हूँ
बन दुखी मैं देवदास उसके ख्यालों में रहता हूँ
मां-बाप की सुन अरदास उनके सवालो का जवाब में होता हूँ
क्योकि मैं बिन पत्नी के रहता है
समय की पड़ी ऐसी मार
कि मा बाप खता कही
जिम्मेदारी से मानी ऐसी हार
जिन्दगी मेरी खता रही
फिर भी मैं बिन पत्नी के रहता हूँ
अपनो के तानो से होकर बेबस किसी सुन्दरी संग नाता रखना पड़ा
सपनों के तानों से होकर बेबस उस सुन्दरी खातिर जिम्मेदारी से नाता रखना पड़ा
क्योकि मैं अपनी पत्नी से डरता हूँ.
उसके आने से हुआ मुझे मेहनत की पहचान
रख थकान सुरत पर घर आता था
खुशी ले वो मतवाली इस मेहनत की पहचान
पानी संग चाय रख प्रेम संग निवाला खिलाती थी
तब मैं अपनी पत्नी के प्रेम में रहता था
भूल गया मैं उसके संग रहकर अपने ख्यालो के सारे घावों को
गुल गया मैं उसके प्रेम मे रहकर. अपनी मत वाली मदभरी चालो को
क्योंकि मैं अपनी पत्नी के प्रेम में रहता हूँ
पर्स में मेरे ना सही पर ख्यालों में उसकी हंसी रहती है ।
कर्ज में मेरे साथ आ रहीं, पर जवाबो में उसकी हंसी रहती है।
क्योकि मेरी पत्नी मेरे संग प्रेम से रहती है।
भरत कुमार सोलंकी