“मैं दिल हूं हिन्दुस्तान का, अपनी व्यथा सुनाने आया हूं।”
मैं दिल हूं हिन्दुस्तान का, अपनी व्यथा सुनाने आया हूं।
शब्दों का माध्यम लेकर मैं, अपनी पीड़ा बतलाने आया हूं।।
राजनीति हर तर्क में क्यो है , क्या जनहित का कोई मोल नहीं।
मिथ्या इन भाषण में क्यो है, क्या मतलब की राजनीति सही।।
टूटी-फूटी वाणी से मैं, यह प्रश्न उठाने आया हूं।
मैं दिल हूं हिन्दुस्तान का………।
मतलब का वो जाल है बुनते, फिर राष्ट्रभक्त कहलाते हैं।
निर्धन से भोजन ये छीनकर, फिर अन्नदाता बनजाते हैं।।
दुखियों के अश्रु लेकर मैं, अंत:कृति मशाल जलाने आया हूं।
मैं दिल हूं हिन्दुस्तान का………।
मर्यादा की बात वो करतें, दुशासन के संरक्षक हैं।
न्याय का उद्घोष हैं करतें, अधम अन्यायी कंस हैं।।
द्रोपदी की रक्षा के खातिर, मैं शस्त्र उठाने आया हूं।
मैं दिल हूं हिन्दुस्तान का ………।
समाचार का नाम वो लेते, सनसनी फिर फैलाते हैं।
चाटुकारिता धर्म अस्तित्व हैं जिनका, लोगों में बहस कराते हैं।।
जनमत की रक्षा के खातिर, उन्हें मैं पाठ पढ़ाने आया हूं।
मैं दिल हूं हिन्दुस्तान का……….।
जनता की क्या बात करें, धृतराष्ट्र तुल्य ये रहते हैं।
कुंभकरण की भांति ये सब, हर पल बस सोया करतें हैं।।
जन-जागरण की ज्योति लेकर मैं, इन्हें जगाने आया हूं।
मैं दिल हूं हिन्दुस्तान का……….।
मैं दिल हूं हिन्दुस्तान का, अपनी व्यथा सुनाने आया हूं।
शब्दों का माध्यम लेकर मैं, अपनी पीड़ा बतलाने आया हूं।।
“समाज की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि यहां जनता सब कुछ जानते हुए भी सोती रहती हैं । फिर जब किसी निर्दोष की बलि चढ़ जाती हैं तब अपना आक्रोश दिखाने सड़क पर उतर आया करते । आखिर ये आक्रोश सिर्फ गलत हो जाने के बाद ही क्यो आता है । और ये आक्रोश भी क्षणिक होता है कुछ दिन आवाज उठाने के बाद सब शांत हो जाते हैं। क्या इसी तरह समाज का उत्थान होगा?? आवश्यकता है एक सकारात्मक सोच के साथ निरंतर प्रयास करना जब तक सफलता प्राप्त न हो जाये ।”
“जागो जनता जागो”
जय हिन्द जय भारत
वंदेमातरम, इंकलाब जिंदाबाद।