मै घट हूँ घटनाओ का
घट घट को हर कोई माने, पर घट को ना कोई जाने,
हम सब उस घट के स्वामी, जहाँ बस्ता सबका अंतरयामी।
इस घट को रखना उज्जवल, बस जाए वो स्वामी पल पल,
घट को रोज घटाना इनसे, क्रोध लोभ मद जाए मन से।
घट से घटाए द्वेष भावना, तृष्णा घट को घट से मारना,
यदि घट जाए हमारी घट तोली, तो मरघट जले स्वार्थ की झोली।
मद घट, घट जा अहम ज्वाला से, घट जाए, घट के दुर्दिन घटना से,
पनघट में शोभित घट डालो, कर पावन घट, रचियेता बसा लो।
पापो से घट, तुम सदा घटाना, हिंसा घटा जा मन “संतोषी” बनाना।।