मै और तुम ( हास्य व्यंग )
तुम राजमहलों की बड़ी रानी हो,
मै झोपड़ी का गरीब बालक हूं।
तुम नदी की मीठी चंचल धारा हो,
मै समुंद्र का केवल खारा पानी हूं।
तुम मृग शावक सी कोमल हो,
मै स्टील से कड़ी कठोर धातु हूं।
तुम पूर्णिमा की चमक चांदनी हो,
मै अमावस्या का घोर अंधेरा हूं।
तुम विश्व सुंदरी से बढ़कर हो,
मै अफ्रीका का काला कलूटा हूं।
तुम अमीरो की वैभव शाला हो,
मै गरीबों की एक मधुशाला हूं।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम