मैं
मैं के अंदर आशिक़ है
मैं के अंदर क़ातिल है।
मैं में दास का वास है
मैं में बैठा मालिक है।
मैं ही करता चोरी है।
मैं ही डाले डाके,
मैं ही सीधा-साधा है
मैं ही घर में झांके।
मैं के अंदर मैं हूँ
मैं के अंदर तू।
मैं अंदर समाज है
मैं अंदर ब्रह्मांड।
मैं के अंदर वासना
मैं के अंदर कामना।
मैं के अंदर पत्थर दिल
मैं के अंदर भावना।
मैं के अंदर आग है
मैं के अंदर राग।
मैं के अंदर साज़ है
मैं के अंदर नाद।