मैं
मैं नहीं बेहतरीन
बात ये मुझको पता है
किन्तु मैं जैसी भी हूं
सामने हूं मैं सदा ।
एक ही व्यक्तित्व मेरा
बहुमुखी मैं हूं नहीं ।
मन, वचन, कर्म भिन्नता
प्रतिभा ये मुझमें नहीं ।
न मुझे अति चाह यश की
न ही वित्त प्रधानता ।
बस भाव सच्चे चाहिए
स्वजन हों या मित्रता ।
कोई उर पीड़ित न हो
मेरे कर्मों से कभी ।
याात्रा दुष्कर भले हो
पग थके न ये कभी ।
बस यही आशीष प्रभु
मुझको तुमसे चाहिए ।
मैं हूं जैसी, रहूं वैसी
कुछ विरत न चाहिए ।