“मैं “
वो उसके “मैं ” में रहता था
ना,मेरे “मैं” को कुछ कहता था
फिर एक दिन, उसका अहं टूट गया
मुझसे, मेरा भीं वहम, रूठ गया
उसका “मैं” और मेरा “मैं” तब
ना जाने, कहाँ पर छूट गया
“मैं ” और “मैं ” मिलकर, कब❓
रंगे ,रंग में, और हम बन गये
फिर दोनो “मैं” कहीं, किसी
सपनो की दुनियाँ में, तम कर गये ं
रेखा कापसे
होशंगाबाद ,मप्र