मैं 🦾गौरव हूं देश 🇮🇳🇮🇳🇮🇳का
अक्षर से अक्षर* लिखूं,
भाव लिखूं सही।
स्वर से ही सरगम कहूं,
गाऊं राग सभी।।
कविता में बीता कहूं,
भवितव्यता खरी,
गद्य में गंभीरता भरूं,
सुबोध – शोक हरी।
हंसते भी साहस करूं ,
सूझ बूझ भरा।
दया करुणा की धारा,
नयनों में मेरे पला।।
मर्यादा में बंधा हूं मैं,
राम – सा व्रत मेरा।
लक्ष्मण सम शुश्रूषा करूं,
सीता – सा ताप कड़ा।।
भीष्म-सी प्रतिज्ञा करूं,
कुल-परितोष हिताय।
गंगा सम गतिशील रहूं,
निर्मलता मन शुचिता है।।
कृष्ण नीति से समर जीतूं,
गीतोपदेश सुधा।
अर्जुन तुणीर का अमोघ शर हूं,
समर विजेता रहा।।
प्रताप – वीरता भरा हूं वीर,
शिवाजी – सा है शौर्य।
हठी हमीर-सा,हठात् हटाऊं,
प्राणों का छोड़ विमोह।।
सीता -सावित्री, शारदा पावन ,
सती,पद्मिनी का हूं जौहर।।
लक्ष्मी – दुर्गा मर्दानी मां,
निर्भयता का हूं गौरव।।
वही दानी कर्ण – शिबी हूं,
भगीरथ – सा तपा कठोर।
पौरुष पुरु हूं स्वाभिमानी मैं,
सिकन्दर का अभिमान तोड़।।
मैं सिंह – सम, गज – शत्रु रौंद,
हूण विजेता, हूं यशोधर्मा।
मैं चाणक्य देशहित रुद्र बन,
ताण्डव – कुटिल हूं नीतिकर्मा।।
आज भी रगों में रक्त रमा है,
मान – धीरता, गौरव पुरातन।
हरि हूं, हर हूं, विष्णु व्यापक,
मैं सर्वेश्वर, हूं यम – बंधन।।