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9 Sep 2021 · 1 min read

मैं हाथ मिलाऊँगा गले नहीं लगाऊंगा

तुम क्या जानो मैं कितने दफे बचा हूं डूबने से
प्यासा मर जाऊंगा पर दरिया के पास नहीं जाऊंगा,

लहरों का क्या भरोसा कब वादाखिलाफी कर दें
भीग जाऊँगा मैं साहिल पर घर नहीं बनाऊंगा,

कौन जाने सुबह का भूला कब लौट आए
मैं चौखट का चिराग नहीं बुझाऊंगा,

मैं सच कहूंगा और तेरा दिल दुखेगा
झूठ बोल कर तुझे अपना नहीं बनाऊंगा,

तुझे भी तो पता चले मेरे गम-ए-कारोबार का
हाथ मिलाऊँगा मैं गले नहीं लगाऊंगा,
संदीप अलबेला

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