मैं सोचता हूँ कि आखिर कौन हूँ मैं
मैं सोचता हूँ कि आखिर कौन हूँ मैं
अपने ही सवालों से बस मौन हूँ मैं
बचपन से जवानी खयालों में गुजरी
हर घड़ी देखो बस सवालों मैं गुजरी
डूबा रहा दिल ख्वाबों के साये में
ढूंढता रहा खुद को खुद मौन हूँ मैं
अपने ही सवालों से बस मौन हूँ मैं
जवानी थी बहारों और उमंगों भरी
तितली व फूलों जैसी थी रंगो भरी
जवानी गुजरी सपनो के साये में
ढूंढता रहा खुद को खुद मौन हूँ मैं
अपने ही सवालों से बस मौन हूँ मैं
गृहस्थी में कमाते रहे फुर्सत कहाँ है
उलझी हुई पहेली यह जीवन यहाँ है
रह रहे सब जद्दोजहद के साये में
ढूंढता रहा खुद को खुद मौन हूँ मैं
अपने ही सवालों से बस मौन हूँ मैं
“V9द” तेरी जिंदगी कोई कयास है
भ्रम का है खेल बस झूठी आश है
जी रहे बस सभी मौत के साये में
ढूंढता रहा खुद को खुद मौन हूँ मैं
अपने ही सवालों से बस मौन हूँ मैं
स्वरचित
V9द चौहान