मैं सीख रहा हूँ
मैं सीख रहा हूँ
मैं सीख रहा हूँ
कुत्तों से
ज़ख़्मों को अपनाना
चाटते रहना
इसे हरा रखने को नहीं अपितु
उन्मूलन के आख़री
क्षण तक अपनाए रखने के लिए
मैं सीख रहा हूँ
जंगली लताओं से
काँटों पर बिखर जाना
दर्द अपनाना और
दर्द को सुसज्जित करना
मैं सीख रहा हूँ
मछलियों से
रात में नींद चुगना
नींद के बुलबुले बनाना
और इतना खो जाना
इन बुलबुलों में
कि ख़ुद को पता न चले
ये नींद भी क्या बला है
मैं सीख रहा हूँ
कमल जलकुंभी से
जिसके पत्तों ने
पानी में रहकर
कभी पानी को
टिकने न दिया
अपनी सतह पर
जिसकी जड़ें समझाती हैं
कीचड़ से स्वर्ण किरणें
सींचने की कला
और बिछ जाना
गुलाबी पंखुड़ियों पर
सजा देना वीरान
ठहरे पानी को
और बना देना
सुंदर सरोवर
काश हम भी बना पाते
कंकरीट जंगल को
एक मनोरम तपोवन
एक सुंदर उपवन
मन के आइने को
थोड़ा और साफ़ कर पाते
नींद से इश्क़ करते
प्रेम का इत्र लगाते
असमानता को पाटते
वर्ण रहित समाज बनाते
परंतु मैं अभी भी सीख रहा हूँ
यतीश २/१/२०१८