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6 Jan 2018 · 1 min read

मैं सीख रहा हूँ

मैं सीख रहा हूँ

मैं सीख रहा हूँ
कुत्तों से
ज़ख़्मों को अपनाना
चाटते रहना
इसे हरा रखने को नहीं अपितु
उन्मूलन के आख़री
क्षण तक अपनाए रखने के लिए

मैं सीख रहा हूँ
जंगली लताओं से
काँटों पर बिखर जाना
दर्द अपनाना और
दर्द को सुसज्जित करना

मैं सीख रहा हूँ
मछलियों से
रात में नींद चुगना
नींद के बुलबुले बनाना
और इतना खो जाना
इन बुलबुलों में
कि ख़ुद को पता न चले
ये नींद भी क्या बला है

मैं सीख रहा हूँ
कमल जलकुंभी से
जिसके पत्तों ने
पानी में रहकर
कभी पानी को
टिकने न दिया
अपनी सतह पर

जिसकी जड़ें समझाती हैं
कीचड़ से स्वर्ण किरणें
सींचने की कला
और बिछ जाना
गुलाबी पंखुड़ियों पर
सजा देना वीरान
ठहरे पानी को
और बना देना
सुंदर सरोवर

काश हम भी बना पाते
कंकरीट जंगल को
एक मनोरम तपोवन
एक सुंदर उपवन

मन के आइने को
थोड़ा और साफ़ कर पाते
नींद से इश्क़ करते
प्रेम का इत्र लगाते
असमानता को पाटते
वर्ण रहित समाज बनाते

परंतु मैं अभी भी सीख रहा हूँ

यतीश २/१/२०१८

Language: Hindi
545 Views
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