” मैं सिंह की दहाड़ हूँ। “
” मैं सिंह की दहाड़ हूँ। ”
मैं सिंह की दहाड़ हूँ ,
दहक रहे , अनल स्वरूप,
आत्म बल का सार हूँ,
मै सिंह की दहाड़ हूँ।
भभक रही, धधक रही,
कश्ती पर सवार हू।
उभर सकूं अनंत तक,
विशालतम पहाड़ हूँ,
मैं सिंह की दहाड़ हूँ।
असत्य, भेद , द्वेष पर
मैं सत्य का प्रकाश हूँ।
पर स्वयं से धर्मयुद्ध में,
मैं शौर्य का उबाल हूँ।
मैं सिंह की दहाड़ हूँ।।
दहक रहे, अनल स्वरूप,
आत्म बल का सार हूँ,
मैं सिंह की दहाड़ हूँ।।
✍सारांश सिंह ‘प्रियम’