मैं सरल हो जाना चाहती हूँ
ना ही कुछ बदलना चाहती हूं
ना ही अफ़सोस करना चाहती हूं
बस जो रिश्ता जैसा है उसे
वैसा ही निभाना चाहती हूं
मैं सरल हो जाना चाहती हूं
निस्वार्थ हो जाना चाहती हूं
हर लम्हा कुछ न कुछ संजोये है खुद में
बस जी भर कर जीना चाहती हूं
रिश्ते बनते हैं निभाने के लिये
बस जो रिश्ता जैसा है उसे
वैसा ही निभाना चाहती हूं
यादें कभी कभी बहुत तड़पाती हैं
उन्हें अपनी आदत बनाना चाहती हूं
नहीं कुछ भी भूलना चाहती हूं
प्रेमभाव,सेवाभाव या हो कर्तव्य
बस निष्पाप निभाना चाहती हूं
मन के अंधेरे खो देना चाहती हूं
बस खुलकर हँसना चाहती हूं
खुलकर रो देना चाहती हूं
भावनायें नहीं होती हैं दबाने के लिये
मैं बेझिझक व्यक्त कर जाना चाहती हूं
छल कपट स्वार्थ को दूर भगाना चाहती हूं
मैं सरल हो जाना चाहती हूं
निस्वार्थ हो जाना चाहती हूं
नहीं समझे जब कोई मन के ज़ज़्बात
मैं खामोश हो जाना चाहती हूं
मैं खुद को ही समझना चाहती हूं
मुस्कुराते हुए बस जीवन धारा के संग
यूं ही बह जाना चाहती हूँ
मैं सरल हो जाना चाहती हूं
निस्वार्थ हो जाना चाहती हूं