मैं विवेकानंद बोलता हूँ!
मैं विवेकानंद बोलता हूं!
मैं विवेकानंद बोलता हूं!!
सुनो सब! बहुत ध्यान से सुनो!!
समय की सख्त तराजू पर
यह वर्तमान तोलता हूं!!
अफसोस भी करता हूं मैं
एकांत क्षणों में डोलता हूं!!
जो भूल गए हैं भारतवासी
वो सब राज खोलता हूं,,,,!!
भूल रहे हैं धीरे- धीरे सब
अच्छी आदर्शों की बातें।
दिन सबके दुविधा में बीतें
संकट में काली रातें।।
मैं आज भी हूं भारत भू पर
मेरे अरमान अधूरे हैं!
मैं खोज रहा हूं द्वार-द्वार
चांदी के लगे कंगूरे हैं।।
न मोह दिखे जीवन से जीव को
न कुदरत पर विश्वास रहा।
भ्रमजाल हुई अनमोल जिंदगी
उलझा-उलझा हर हाल रहा।।
प्रेम है अमृत मानवता का
नफ़रत के सौ स्त्रोत बहे।
प्रकृति अपनी सदा सहायक
इन बिगड़ेलों को कौन कहे।।
है परमेश्वर का वास यहां पर
हर कण में,हर एक मन में।
पर भटक रहा मानव देखो
ढूंढ रहा है तन में,धन में।।
जितने शुद्ध विचार हुए
उतना ही जीवन सफल रहा।
ये पाप भरी कपटी बातें
करने को मैंने नहीं कहा।।
खान-पान के वैभव में ही
चिर जीवन का योग छिपा।
हर बल हासिल हो नित्य योग से
मैं कहता रहा सन्मार्ग दिखा।।
निज संस्कृति गौरव गान यहां
हर भारत वासी करता रहे।
निज भाषा हित अभिमान सदा
हर बच्चा-बच्चा भरता रहे।।
अपनी जननी अपना गौरव
निज गुरु से कोई नहीं महान।
मात पिता और गुरु चरणों में
रहा समाहित सकल जहान।।
राष्ट्र-धर्म स्व-धर्म हमारा
विश्व विजेता अपना मान।
लक्ष्य हो सत्य सनातन सबका
शौर्यवान हों सभी युवान।।
शिक्षा साधन हो पालन का
बढ़ता रहे नित नीति ज्ञान।
चहुं दिशा में गूंजे गाथा
उन्नत खोज करे विज्ञान।।
अक्षय ऊर्जा असीमित आशा
सफल करे हर लक्ष्य महान।
नूतन कौशल नवल कामना
जीत जाइए सकल जहान।।
कर्मठ ऊर्जावान युवा सब
उठो बढ़ो बढ़ते ही जाओ।
जो सुख-सागर सूख गया है
उसमें अमिय की गंगा लाओ।।
रुको नहीं बिन मंजिल पाए
चाहे जान भले ही जाए।
“मौज” जिंदगी सत्कर्मी की
हर हाल देश के काम आए।।