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20 Nov 2021 · 1 min read

मैं लिख जाऊं बारंबार….

मैं लिख जाऊं बारंबार….
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कोई तो है
जो करता है
मेरा इंतज़ार !

उसकी एक ही
जिज्ञासा पे
मैं लिख जाऊं
बारंबार….
ना करूं कभी
उसकी भावनाओं
का तिरस्कार !!

आते तो रहते हैं
आग्रह, आरजू ,
हजारों, हज़ार….
पर उसकी किसी
मीठी सी प्रार्थना को,
ना कर पाऊं कभी
भी नजर-अंदाज़ !!

अरे, उसका भी तो है
मुझपे, कुछ-न-कुछ
हक़, अधिकार !
उसने दी है मुझे
कई मर्तबा ही….
खुशियाॅं अपार !!

गर लिख जाऊं मैं
उसकी खातिर कुछ भी ,
तो आ जाएगी
चेहरे पे उसके….
छोटी सी मुस्कुराहट
और चहुॅंओर बहार !!

सतत् सोच रहा….
कुछ लिखने को ,
पर इसके लिए
होना तो चाहिए ,
कुछ-न-कुछ
ख़ास आधार !!

कथानक कुछ
ऐसा मिल जाए ,
दृश्य कुछ ऐसा
जीवंत हो जाए ,
शब्दों में पिरोते वक्त
भाव भी उसमें
समाहित हो जाए ,
देखते ही देखते….
लेखनी मेरी चल जाए ,
काश, इक रचना
सृजित हो जाए ,
हर कोई समझ सके
उस रचना का सार !
फिर ख़त्म कर दूॅं मैं
किसी का लंबा सा ,
मीठा सा…. इंतज़ार !!

फिर लौटेंगी खुशियाॅं
उसके चेहरे पे….
मानो ! बेशुमार….
उसे अवश्य होगा
इक सुखद सा एहसास !
शुक्रिया…, धन्यवाद !!

स्वरचित एवं मौलिक ।
सर्वाधिकार सुरक्षित ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
कटिहार ( बिहार )
दिनांक : 20 नवंबर, 2021.
“”””””””””””””””””””””””””””””””
?????????

Language: Hindi
7 Likes · 6 Comments · 469 Views

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