मैं रूठी हूँ
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मैं रूठी हूँ।
मुझे मनाओ,प्रिय।
मेरे ओठों को छूकर
अपने अधरों से।
स्पर्श के मिठास में
ढूँढूंगी मैं अपना हास।
मेरे आँखों में देखो प्रिय।
उन परावर्तित रश्मियों में
ढूँढूंगी मैं अपना सौंदर्य
तुम्हारे हृदय में।
मुझे सहलाओ प्रिय।
उस गुदगुदाहट में
ढूँढूंगी मैं दर्द का प्राण
होता हुआ विसर्जित।
लो प्रिय मुझे आलिंगन में।
उस अंक में करके शयन
ढूँढूंगी मैं तन और मन
अपना समर्पित।
मुझे मनाओ,प्रिय।
मैं रूठी हूँ।
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