“मैं मेरी मां जैसी” (कविता)
ममता रूपी छबि मां की
कभी भुलाई नहीं जाती
तेरे भोलेपन की मीठी कसक
दिल की गहराइयों में समाई रहती
तकलीफ किसी की भी
उससे देखी नहीं जाती
खुद तकलीफ़ सहकर भी
सदा ही वह हसती रहती
खुश हो जाती हूं मैं
सब मुझे हैं कहते
मां जैसी ही हसमुख हो
मां से सीखी पाक कला से
सबको रसास्वादन कराती हूं
अन्नपूर्णा प्रसन्न रहे सदा
यह आशीर्वाद बड़ों से पाती हूं
मैं मां जैसी स्वाभिमानी बन
सच की राह पर चलने के
संस्कार अपने बच्चों को देती हूं
बेटी ने जन्म-दिवस
पर मुझे बनाकर गुलाब-जामून
दिया सरप्राइज-उपहार
मैं मेरी-मां-जैसी-तैयार ।