मैं मेरा घर मेरा मकान एक सोच
“मै मेरा घर और मक़ान – एक सोच”
जब से, हमारे अपनों की, अतरंग तस्वीरें
सामाजिक माध्यमों में नज़र आने लगी हैं
ये साफ हो चला है के घर की खुशियां अब
घर से बाहर, मक़ानों में, ढूंढी जाने लगी हैं
हद तो तब हो गई जब, अपनों से दबी ज़ुबान
कहने वाली बातें, सरेआम कही जाने लगीं हैं
घर हमेशा से रहा था, घर हमारी खुशियों का
दुनिया खुशी मनाने घर से बाहर जाने लगी है
हमारा तो यही अनुभव था, प्रेम को सदा अनुभव किया जाता है
आज नया चलन है, दुनिया अब इस अनुभव को दिखाने लगी है
घर दरों और दीवारों से नहीं वरन् अपनों के अपनेपन से बना करते हैं
इसके रोशनदान दरवाजे खिड़कियां ताज़ी हवाओं से ही खुला करते हैं
ढूंढना चाहोगे गर तो हर एक खुशी मिलेगी दोगुनी चौगनी हो कर यहां
जीवन कस्तूरी यहीं है जिसे ढूंढने नज़र चौखट के बाहर जाने लगी है
~ नितिन जोधपुरी “छीण”