मैं मरघट का रहने वाला हूँ ।
मैं मरघट का रहने वाला हूँ ,
डर से नहीं डरता हूँ।
जहांँ हर रोज मरते जलते है,
एक रोज मरने से डरे कायर नहीं हूँ।
निडर साहसी वीर हूँ मैं,
कर्मशील ऐसा धीर हूँ मैं,
तूफानों से लड़ कर जीता हूँ,
संघर्षों से नहीं डरता हूँ,
बिन मंजिल पाये नहीं रुकता हूँ।
मैं मरघट का रहने वाला हूँ,
डर से नहीं डरता हूँ।
मैं साधु हूँ ,मैं खोजी हूँ,
भस्म लगाए रहता हूँ,
तप करता हूँ अग्नि वेदी में,
लक्ष्य साध कर बैठा हूँ,
जिज्ञासा मन में कम नहीं,
विश्वास रगो में भरता हूँ,
पीछे मुड़कर नहीं बढ़ता हूँ।
मैं मरघट का रहने वाला हूँ,
डर से नहीं डरता हूँ।
मैं अकेला लाशो के बीच,
दृढ़ संकल्पित हूँ, जिंदा हूँ,
निद्रा खोकर जागा हूँ,
दुर्गम स्थानों में रहकर भी,
हौसला बुलंद कर रहता हूँ,
मोक्षधाम भी दूर नहीं,
मजबूत इरादों से रहता हूँ।
मैं मरघट का रहने वाला हूँ…
डर से नहीं डरता हूँ ।
तुम मानव हो रक्त प्रवाह है नस में,
ख्वाहिशों की ताकत है तुझमें,
विश्वास से जग में जीता है,
खतरों से भी नहीं अछूता है,
कमजोरी से ना डर,
कायम रख ,कामयाब बन,
निडरता से तू भी लड़ता चल ।
मैं मरघट का रहने वाला हूँ…
डर से नहीं डरता हूँ ।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।