मैं मजबूर हूँ
अब नदियों ने
पानी उछालना
मना कर दिया है
अब सागर ने
तरंगों को
लहराना
मना कर दिया है
इसलिए जीवन में
उमंगों की करवटें लाना!
माफ करना…मैं मजबूर हूँ
अब बहारें जल्दी नहीं आती
विटपों के नीचे
पर्णढेर लग जाता है
खिज़ाओं ने
नाकाबंदी करना
शुरू कर दिया है
इसलिए मन का
अब करवटें लेना!
माफ करना…मैं मजबूर हूँ
पुहुपों ने पथों को
फूलपथ से ज्यादा
कंटकाकीर्ण कर दिया है
बिल्लियाँ रास्ता अब
काटे ही जा रहीं हैं
दूर अनहद से अब मानो
रोने की आवाजें आती हैं
हृदय का अब
प्रफुल्लित होना!
माफ करना…मैं मजबूर हूँ
अब पथ निहारती
वे शून्य में
माधुरी की
टंकटंकाती आँखें
आस को हार चुकी हैं
उन्होंने नई राहों को
अब चुन लिया है
वहाँ से
मदमाती शुकुँ भरी
आहों की
सर्द हवाएँ जो चल पड़ी हैं
अब कौन किसका आखिर
इतना इंतजार करे ही क्यूँ
दुनिया बदल चुकी है
पिय से अब पुनर्मिलन करना!
माफ करना…मैं मजबूर हूँ।।
सोनू हंस