मैं भी साथ चला करता था
मैं भी साथ चला करता था, अब मेरी मजबूरी देखो
जिनके साथ रहा करता था, आज उन्हीं से दूरी देखो
मैं भी साथ चला करता था……………
जिनके काम किए हैं मैने, छोड़ के अपने काम सुनो
पड़ जाता है उनसे काम तो, उनके काम जरूरी देखो
मैं भी साथ चला करता था……………
मेरी मेहनत रंग ना लाई, या किस्मत का मारा हूँ मैं
वो बन गए बड़े साहब और, अपनी जी हजूरी देखो
मैं भी साथ चला करता था…………..
मेरी किस्मत साथ न दे तो, इसमें दोष कहाँ है मेरा
वे खाते हैं साही पनीर और, मेरी किचन अधूरी देखो
मैं भी साथ चला करता था………….
उनके रिश्ते दौलत वालों से, मैं गाँव में प्रीत बढ़ाता
जाहिल हो गए लोग गाँव के, उनकी ये दस्तूरी देखो
मैं भी साथ चला करता था…………..
मिलने को भी जाओगे तो, सोचेंगे ये कैसे आ गया
‘V9द” हकीकत छुपी कहाँ, चेहरे इनके बेनूरी देखो
मैं भी साथ चला करता था…………..
स्वरचित
V9द चौहान