मैं भी चुनाव लड़ूँगा (हास्य कविता)
सुना बै बहुत फाइदें है?
चुनाव ही तो जीतना है.
बहुत जल्द मालामाल हो जाउँगा?
फिर तो मैं भी चुनाव लड़ूँगा?
धर्म जाति के नाम पर लोगों को लड़बाउँगा?
लगे हाथ दंगे भी भरकवा दूँगा?
है मुझे नेतागिरी जो करनी,
क्योंकि मै भी चुनाव लड़ूँगा?
देश बिक जाए तो बिक जाने दो?
या जनता बिलखकर भूखे मर जाए?
अपना ही जेब भरना चाहिए बस,
सरकारी खजाने भी साफ कर जाउँगा?
लोगों को हिंदू मुस्लिम मे उलझाए रखूँगा,
ये आपस मे ही लड़ कट मरेंगे?
फिर न मांगेगा कोई रोजगार?
मैं बढ़ते बेरोजगारों की लाइन लगवा दूँगा?
ना प्रतियोगिता परीक्षा जैसी तैयारी?
ना ही पढ़ने लिखने सा कोई झंझट?
लोगों को भरमाकर अपने तरफ कर लो,
झूठ फरेब से ही चुनावी मैदान मे कूद पड़ो?
जुमलों की झड़ी से देश का विकास करूँगा?
सब कुछ फ्री के नारे भी लगवा दूँगा?
बस मंत्री पद ही तो चाहिए मुझे,
वोट जरूर देना अबकी मैं भी चुनाव लड़ूँगा?
कवि- किशन कारीगर
(©काॅपीराईट)