*मैं भी कवि*
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
शीर्षक मैं भी कवि
साहित्य सृजन को रे मनवा ।
क्या मानव एमऍ बीए ही चाहिए ।
एक सुन्दर कविता के लिए ।
क्या मानव सुन्दर ही चाहिए ।
मैं नहीं जानता तुलसी को ।
न ही मैं मिला कभी तिलोत्तमा से ।
मैं नहीं जानता कबीर को ।
न ही मैं मिला कभी रविदास से ।
लेकिन भावों के माध्यम से ।
निस दिन ही मैं कुछ न
कुछ हूँ लिखता रहता ।
उन जैसा तो बन सकता नहीं ।
उन जैसा तो लिख सकता नहीं ।
पर कोशिश तो करता रहता हूं ।
साहित्य सृजन को रे मनवा
क्या मानव एमऍ बीए ही चाहिए ।
एक सुन्दर कविता के लिए
क्या मानव सुन्दर ही चाहिए ।
मैं इंसा हूँ मैं भी ईश्वर की अनुपम रचना ।
मैं इंसा हूँ मैं ईश्वर की अनुपम रचना ।
मैं सृजन करूँ या कर पाऊं
उसके जैसा, ऐसा तो मेरा भाग्य नहीं ।
मैं नहीं चाहता बनना भी
पर काव्य सृजन कर सकता हूँ।
मेरे अन्दर कोमलता है, एक कविता की ।
इक वैचारिक अनबेषक हूँ, इक नन्ही कालिका सी।
मैं कर्तव्यों के निर्वहन से कर्मवीर, बन सकता हूं।
मैं साहित्य श्रम का पथिक उस राह चल सकता हूं।
शब्द – शब्द चुन कर के, मैं बुनता काव्य अतिविशेष
मस्तिष्क के कैनवास पर, मैं रचता छंद अनेक ।
संस्मरण के माध्यम से अपनी, जीवन यात्रा का वृतांत बतलाऊँगा ।
उन जैसा तो बन सकता नहीं, उन जैसा तो लिख सकता नहीं ।
पर कोशिश तो करता रहता,
साहित्य सृजन को रे मनवा
क्या मानव एमऍ बीए ही चाहिए ।
एक सुन्दर कविता के लिए ।
क्या मानव सुन्दर ही चाहिए ।
तुम भी चाहो तो तुम भी समझो,
ये गणित विषय का समीकरण।
दो और दो के पांच बनाओ प्रति क्षण,
है ना ये त्रिकोण कितना अजीब।
एक कली का सुबह – सुबह चटक कर फ़ूल बन जाना।
कितने दिन का जीवन उसका पर परिचय अदभुत क्षमता वाला।
छोटे से दिमाग में प्रति क्षण भावों के ताने बाने।
कविता छ्न्द दोहे और रचनाएं सृजित अनुपम माने।
किस दिन कवि बन जाता है ख्याति प्राप्त कोई क्या जानें?
लिखते- लिखते कोई मीर हुआ कोई ग़ालिब सा मशहूर हुआ।
कोई मुँशी प्रेम चंद कोई दुष्यन्त सा सबका चहेता अति महत्वपूर्ण हुआ।
आश्चर्य चकित क्यों होते हो, वे भी तो तुम जैसे थे ।
हम भी तो कवि बन सकते हैं हम भी रचना रच सकते हैं।
हम भी कोशिश कर सकते हैं,
साहित्य सृजन को रे मनवा ।
क्या मानव एमऍ बीए ही चाहिए ।
एक सुन्दर कविता के लिए ।
क्या मानव सुन्दर ही चाहिए ।