मैं बैठा तेरे अंदर में
तुम ढूंढ रहे थे बन बन में, मैं बैठा तेरे अंदर में
न देखा कभी झुका सिरको, तुम ढूंढ रहे थे मंदिर में
मैं बैठा तेरे अंदर में
मृगतृष्णा मैं जग में डोले, भेद ना क्यों मन के खोलें
सागर है फिर भी प्यासा, क्यों निर्जन बन में डोले
मैं बैठा तेरे अंदर में, तुम ढूंढो सात समंदर में
किस चाह में दर-दर भटक रहा
क्यों जीवन पथ पर अटक रहा
जरा झांक ले खुद की अंदर में
क्यों ढूंढ रहा है बन बन में, मैं बैठा तेरे अंदर में
तुम ढूंढ रहे थे वन वन में, मैं बैठा तेरे अंतस में
सुरेश कुमार चतुर्वेदी