मैं बेरोजगार हूँ
मैं भारत का युवा,सच्चाई का तलवार हूँ,
मगर अब घर पर भार हूँ, क्योंकि मैं बेरोजगार हूँ ।।
मेरा बचपन बीत गया, लोगों से सुनते सुनते,
मैं देश का भविष्य हूँ,देश का आधार हूँ,
मगर आज मै अपने ही, देश पर भार हूँ,
क्योकि मैं बेरोजगार हूँ ।।।
नही पता है मुझको, क्या मेरा अधिकार है,
कैसी है सरकारी नीतियां, कैसा अत्याचार है,
खबर नही है किसी को देश मे,
कितने युवा बेकार है,
कैसा होता है दर्द,ये जलन कैसी होती है,
सियासी लोग क्या जाने,ये तपन कैसी होती है,
जीवन में कुछ न करपाने का,
सूनापन कैसा होता है,
जेबों को भर रहे हैं अपने, नेता और अधिकारी,
इससे तो अच्छी थी,अंग्रेजों की अत्याचारी,
मगर ये बात अब मैं किसे बताऊँ,
मैं खुद बेकार हूँ , क्योंकि मैं बेरोजगार हूँ।।।
आज मगर मजबूर सही मैं,पर नही गुनहगार हूँ,
क्योंकि मैं “विनय” हूँ, न कि भारत सरकार हूँ ,
भ्रस्टाचारी तन्त्र का,अपारित अधिकार हूँ,
मैं इसी देश का बसने वाला,बेरोजगारी की मार हूँ ।।
मै भारत का युवा,सच्चाई का तलवार हूँ,
अपनी किस्मत में,अभी बेबस और लाचार हूँ,
मैं धरती पर बोझ हूँ,अपने घर का भार हूँ,
क्योंकि मैं बेरोजगार हूँ,क्योंकि मैं बेरोजगार हूँ ।।।
विनय कुमार करुणे