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22 May 2024 · 1 min read

मैं बूढ़ा नहीं

माना कि बेहिसाब नहीं पर लाचार इतना भी नहीं
कमर लचकती कम है, पर यारो कोई बड़ी बात नहीं

सोता कम थोड़ा हूँ , थोड़ा जाग लेता हूँ
रात उठके थोड़ा खाँस लेता हूँ
माना दौड़कर दस बीस सीधी चड़ी नहीं जाती
पर सीढ़ी के किनारे रेलिंग पकड़ कर ही चढ़ूँ इतनी भी दरकार नहीं

शायद समय और ऊर्जा दो नो उतने नहीं
कि दीवार पर कोई बड़ी पेंटिंग बना दूँ
पर यारों कोई हम नहीं , अब भी छोटे काग़ज़ों , और तो और इस फ़ोन की स्क्रीन पर , रंगो को भरसक उभार देता हूँ

ज़िंदगी कितनी भी बेरंग मोनोक्रोम रंग भरे मेरे कैनवास पर
इतने रंग अपनी तस्वीरों रोज़ भरता हूँ , कि ज़िंदगी को पछाड़ देता हूँ

कितना भी मज़बूर करते जायें रिश्ते उनके साथ में हरदम व्यस्त रहूँ
पर बालकनी के कोने बैठके चाय की चुस्की एक नयी कविता लिखे का वक़्त
निकाल लेता हूँ
अभी तो बढ़ा और है गेम ये मेरा ज़िंदगी के साथ
कभी वो धक्का मार देती है कभी में उसे धकियाने का मौक़ा निकाल लेता हूँ

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