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26 Jul 2021 · 1 min read

मैं बादल, तू सावन

मैं तो हूँ आवरा बादल,
तुम मेरी सावन की घटा।
शाश्वत होगा मिलान हमारा,
बिखरी जुल्फ़ों को तो हटा।

उमड़ घुमड़ निहारूँ तुझको,
फिर मुँह क्यूँ बिजकाती हो?
रूप नमीं है पास तुम्हारे,
दरश में क्यूँ शरमाती हो?

यह मेरा पागलपन है क्या,
की देखूँ तेरी खुशहाली,
ज़ुल्फ़ लटों से क्यूँ ढ़क देती,
गोर कपलों की लाली।

जब पुरुवा सहलाये तुझको,
चूनर धानी लहराये ।
तब मन मेरा विह्वल होके,
पुरुवा संग ही बौराये।

सावन की इक प्यास हूँ मैं,
तू तो है सावन की घटा।
हम दोनों का मिलन हो जाये,
निखर जाय नियति की छटा।

तुम प्यासी सृष्टि बन जाओ,
मैं बन जाऊँ सरस बादल।
मैं बरसाऊँ खुशियाँ तुझपर,
समेट लो फैला आँचल।

★★★★★★★★★★★
अशोक शर्मा,कुशीनगर,उ.प्र.
★★★★★★★★★★★

Language: Hindi
1 Like · 319 Views
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