मैं – बस मैं हूँ
१३)
” मैं , बस मैं हूँ
मैं , बस मैं हूँ
वही मुझे समझा जाए
पंख मेरे, उड़ान मेरी
फिर दूजा क्यूँ मुझे उड़ाए ?
क्यों सारे इम्तिहान
मेरे हिस्से ही आते
पास होने पर भी
लांछन मुझपर ही लगाए जाते ?
बातें मत करो तुम
मुझको समझा के रामराज
क्यों नहीं दे सकते तुम
मुझको मेरा सीता राज ?
क्यों दूँ मैं ही अग्नि परीक्षा
सीता बनके
क्यों कराऊँ चीर हरण
पांडव की द्रोपदी बनके ?
क्यों मैं बनूँ शकुन्तला
दर-दर भटकूँ, नीर बहाऊँ
क्यों मेरे हिस्से नहीं ख़ुशी
दुख से चोली दामन साथ निभाऊँ ?
अब पुरुषों को देनी होगी
हर मौक़े पर अग्नि परीक्षा
कसूँगी मैं अब उनको
और जाचूँगी उनकी शिक्षा-दीक्षा।
स्वरचित और मौलिक
उषा गुप्ता, इंदौर