मैं बसंत
मैं बसंत
ये दूर तलक सफर हो ख्वाहिशों का
अनजानी मिलती खुशियों की बारिशों का
झिलमिल करती रश्मियों की बरसात
मिल जाए तुम्हें जब मिली जुली सौगात
इन बातों से तुमको जतलाने आया हूँ
सत्य शाश्वत यही बतलाने आया हूँ
खुद को पीत वसन से सजा धजा कर
नवजीवन की प्यारी इक रंगोली धर
कुछ झरते पत्तों का संगीत लिया
क्षणभंगुर जीवन के पन्ने लेकर
परिवर्तन का यह गीत सुनाने आया हूं
सत्य शाश्वत यही बतलाने आया
ठिठुरे हुए से आकाश धरा पर
पावन इक रंगीला सा त्योहार लेकर
नवल धवल ऊष्मा का उपहार लिए
बस इसीलिए,तू जीवन का सार जिए
ये बदला स्वरूप ले,समझाने आया हूँ
सत्य शाश्वत यही बतलाने आया हूँ
जो हिम शिला पाषाण हुए खुद में
उनमें जीवन का अंश इक जगाने
जो क्रौच वध से हुए लहुलुहान
आया हूँ उनको देने इक पहचान
अधरों पर इक मुस्कान सजाने आया हूँ
सत्य शाश्वत यही बतलाने आया हूँ